फ्लोटिंग आइकॉन

Tuesday, 17 June 2014

आत्म-निष्ठा


प्रिय साधक ! 
  • बहुत प्रयास करने पर भी मन शान्त नहीं होता ? 
  • वृत्तियाँ स्थिर नहीं होती ? 
  • तुम्हारी साधना निष्फल सी भास रही है ? 
  • अहंकार विलीन होने के बदले ठोस होता चला जा रहा है ?
  • कोई उपाय नहीं नजर नहीं आता ?


देख, एक रहस्य समझ ले। यदि तू मन की वृत्तियाँ से डरकर उनको स्थिर करने का उपाय करेगा तो मन ज्यादा पुष्ट होता जायगा, अहंकार खड़ा ही रहेगा। क्योंकि वास्तव में वे तेरी ही सत्ता से जिन्दे हैं। इसलिए तू मन और मन की सत्त्व रज तमोगुणवाली वृत्तियों को मिथ्या जानकर उनकी तरफ से बेपरवाह हो जा। ऐसा करने पर मन अपने आप शान्त हो जायेगा। क्या तूने बृहस्पति के पुत्र कच का हाल नहीं सुना ?

कच ने बहुत वर्षों तक अहंकार को निवृत्त करने का प्रयत्न किया और अहंकार अधिक पुष्ट होता गया। तब देवगुरू बृहस्पति ने उसे कहाः "पुत्र ! यह अहंकार तुझ आत्मा में मिथ्या स्फुरा है। उसका क्या उपाय करता है ? उसको मिथ्या जान। मिथ्या के लिए परिश्रम मत कर।" ऐसा उपदेश सुनकर कच को ज्ञान हो गया और वह जीवन्मुक्त होकर विचरा।

अतः हे अहंकार के पीछे डंडा लेकर भागने वालों ! डंडे को फेंक दो। क्यों मिथ्या श्रम करते हो ? याद रखोः जिस समय तुम अहं को मिथ्या जान लोगे उसी क्षण वह निवृत्त हो जायगा। रज्जू का सर्प लाठी से नहीं मरेगा, उसके मिथ्यात्व के ज्ञान से ही उसकी तात्कालिक निवृत्ति होती है।

वृत्तियों को सदा के लिए स्थिर करने की मेहनत मत करो। सर्व वृत्तियों का जो प्रकाशक है, अधिष्ठानरूप तुम्हारा आत्मा है उसे जान लो। आत्मनिष्ठ हो रहो और वृत्तियों की परवाह मत करो। वृत्तियाँ अपने आप शान्त होती जायेंगी।

प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद संत श्री आशारामजी बापू के
सत्संग-प्रवचन



ॐ ॐ गुरूजी ॐ 



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