ओडिशा में ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद मेरी ट्रेन भुवनेश्वर से थी २३ की सुबह को।लेकिन सुकिंदा जैसे दुर्गम क्षेत्र में एक ही बस चलती है जो उसे शहर से जोडती है | अतः मुझे एक दिन पहले ही निकलना पड़ा।मैं भुवनेशवर शाम ८ बजे पहुँच गया।
अब मैं या तो स्टेशन में पूरी रात रुकता , या फिर पास के खंडगिरी आश्रम में .मैं अपने एक मित्र से पुछवाया की क्या वहाँ रात भर रुक सकते हैं , उनकी और से उत्तर सकारात्मक मिला।
मैं भुवनेश्वर में बस से उतर कर सीधा आश्रम पहुँचा ,मेरे मन में शंका हो रही थी की आजकल की स्थिति को देख कर वे लोग रुकने देंगे या नहीं।
वहाँ पर उन्होंने ने कहा की अगर आप किसी को जानते हैं , तभी रुक सकते हैं अन्यथा नहीं ऐसे उनको कड़े आदेश हैं । तो फिर मैंने इस स्थिति में अपने एक मित्र (जो निर्बाध रूप से भुवनेश्वर अखंड प्रभात फेरी सुप्रचार यात्रा की सुन्दर चित्र डालते हैं)
कैमरे का पूरा सदुपयोग |
भुवनेश्वर प्रभातफेरी के जोशीले युवा |
भुवनेश्वर आश्रमवासी |
प्रभात फेरी का एक दृश्य |
को फोने लगाया जो भुवनेश्वर के ही हैं , वे उनको अच्छे से जानते थे और मुझे आश्रम में ठहरे की अनुमति मिल गई ।
रात्रि में आश्रम की अधिकतर बत्तियाँ बुझी हुई थीं बस पूज्य श्री का श्री चित्र व्यासपीठ पर प्रकाशित था ।
खांडागिरी आश्रम में पूज्य श्री के श्री दर्शन |
मैं अपने सामान रखा , फिर आश्रम संचालक ने पूछ खाना खा लिया अपने ? मैंने कहा नहीं भूख भी लगी है
वे बोले आप थोड़ा पहले आते तो मिल जाता..
{मुझे पता ही था की आश्रमवासी ७ बजे से पहले ही खाना खालेते हैं अतः खाना शेष रहने की सम्भावना न के बराबर थी । मैं मार्ग पर देखते हुए आरहा था की ढाबा आदि कहाँ होगा।
ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें, जिससे ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे। }
फिर वे रसोइ में गए वहाँ एक व्यक्ति के खाने भर चावल एवं कटहल की सब्जी बजी हुई थी।उन्होंने ने पुछा हो जायेगा ? , मैंने कहा आराम से ।
मैंने प्लेट धोयी & खाना खाया । उसी बीच वे आ कर कहते हैं
"हैं न गुरुकृपा ...!! आप इतनी दूर से आये , रहने का मिल गया , खाना का भी हो गया ...ये गुरु कृपा नहीं तो और क्या है ? "
मैं तो अष्ट सात्त्विक भावों में आनंदित हो रहा था, उनके बातें सुन कर
फिर रात्रि में सोने के लिए बिछाहट बिछाई सत्संग शेड में , सभी साधक अपनी अपनी मच्छरदानी में सोते थे , मेरे पास स्लीपिंग बैग था। फिर वहाँ एक साधक भाई से बात हुई , वे ऑनलाइन सेवा में नहीं थे उनकी ऋषि प्रसाद की सेवा थी ।
उनको पूरे केस का अभिनव हाल बताया और ट्विटर पर जो साधक रुझान में बताया , वर्ल्डवाइड एवं इंडिया ट्रेंड के बारे में बताया आदि । अंत में उन्होंने ने पूछ लिया ऑनलाइन सेवा का कोई फायदा है , मैंने कहा अगर सेवा होती है तो ठीक है अन्यथा सिर्फ बातों , फोटो आदि में ही समय चला जाता है लेकिन लगता है की बहुत काम किया आज ऑनलाइन।
हम लोग इसी चर्चे में लगे थेय की शेड भयंकर शब्द के साथ हिलने लगा , एक ५.९ तीव्रता का भूकम्प आया
हम सभी आश्रमवासी निश्चिंत बैठे रहे , जो प्रकृति पूज्य श्री की दासी है , वह अपने स्वामी को,उनके आश्रम को ,उनके बबलूओं का कभी अहित कर सकती है क्या ?
रात भर नींद टूट टूट के आई , ऊपर से आश्रम में सोने से संकोच भी हो रहा था , कहीं कोई गलती न होजाये गुर आश्रम में।
प्रातः ४.४५ में उठ गया एवं नित्यकर्म आदि से निवृत होकर नियम आदि किया , बड़ दादा के फेरे फिरा । तदोपरांत आश्रम में झाड़ू भी लगा , लोग आना चालू हो गये थे उस दिन गुरुवार था क्योंकि ।
रात्रि में एक साधक बोल रहे थे आपको नाश्ता कराके भेजेंगे , तो सुबह मैं उसी की प्रतीक्षा में था लेकिन उसका कोई योग बना नहीं क्योंकि ट्रेन मेरी ९ बजे थी और ८ वहीँ बज गए थे। जब खाने की कोई आस नहीं थी तो रात में भर पेट भोजन मिल गया & सुबह जब आस लगाई तो कुछ नहीं मिला , इसलिए
श्री आशारामायण में आता है
……… एक श्लोक हृदय में बैठा , वैराग्य सोया उठ बैठा,आशा छोड़ नैराशवलंबित …....
वह कौन सा श्लोक था अब जानिए
सर्वं अधितं तेन। तेन सर्वं अनुष्ठितं।।
येन आशा प्रथक कृत्वा। नैराशा अवलम्बितं ।। [हितोपदेश]
पूज्य श्री की व्याख्या
ॐ ॐ गुरूजी ॐ
जानिए क्या होते हैं अष्टसात्त्विक भाव
पूज्य श्री की व्याख्या
मैं (बापूजी) आपको सार-सार बात सुनाकर एकदम आध्यात्मिक उड़ान भराना चाहता हूँ|
सर्वं अधितं तेन (उसने सब अध्ययन कर लिया) । तेन सर्वं अनुष्ठितं (उसने सारे अनुष्ठान कर लिए) ।। येन आशा प्रथक कृत्वा (जिसने आशा-वासना छोड़ दी) । नैराशा अवलम्बितं ।।
उस नारायण में ही आशा रहित होकर, आशाओं का गुलाम नहीं आशाओं का राम होकर विश्रांति पता है उसका सब कुछ हो गया ।
आध्यात्मिक उड़ान भराने वाली सार बातP.P.Sant Shri Asharamji Bapu – Delhi - 18th Aug 2013 Part -1
सुबह ८ बजे आरती हुई , आरती का दर्शन करके सबको हाथ जोड़ के मैं निकला , आश्रम संचालक अभिराम भाई ने बोला फिर से ओडिशा आने तो खण्डगिरि आश्रम अवश्य आना ।
इसी के साथ मेरा उत्कल प्रवास समाप्त हुआ
ॐ ॐ गुरूजी ॐ
जानिए क्या होते हैं अष्टसात्त्विक भाव
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