परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ,विवेक,वैराग्य , श्री योगवाशिष्ठ , श्री योग वशिष्ठ महारामायण , वैराग्य प्रकरण , नवरात्री , डांडिया , फाल्गुनी पाठक ,ओढ़नी ओढूँ और उडी उडी जाये , IIT Bombay , श्री राम वशिष्ठ संवाद ,
बिना इस विडियो को देखा आगे पढने का कष्ट न करें , ये विडियो इस पोस्ट की आधारशिला है
2013 की शारदीय नवरात्रि में मैं भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान, मुंबई में ही था घर जाने का अवसर मिला नहीं , क्योंकि लगभग १० दिन पहले ही अपने प्रमाण पत्रों केलिए घर आया था | नवरात्रियों के समय पूरा साधक परिवार जप अनुष्ठान में लगा रहता है , बच्चे सारस्वत्य मंत्र व बड़े अपने मंत्र के | यह काल मंत्र सिद्धि मंत्र जाग्रति केलिए उत्तम कहा गया है |
मेरे लिए दशहरा , दिवाली बहुत हर्षोल्लास का अवसर होता है , बाज़ार जाना रामलीला देखना दुर्गा पूजा की पुष्पांजलि आदि आदि |
इस बार IITB में ऐसा कोई अवसर तो हाथ लगा नहीं लेकिन मुबई में डांडिया बहुत धूम रहती है| तो मैंने भी अपने मित्र के लैपटॉप पर ऊपर वाला गाना चलाया |
गाने के बोल कुछ इस प्रकार हैं -
FEMALE :
ODHANI ODHU TO UDI UDI JAYE (2)
NA NARE REHAVAYE, NANARE
SEHVAYE
NA KOINE KEHVAYE HAI HAI
MALE :
ODHANI UDE TO BHALE UDI JAYE (2)
TARU MUKHDU MALKAYE,
TARU JOBAN CHALKAYE,
MARA HAIYYA MA KAI KAI
THAYE
FEMALE : ODHANI ODHU TO UDI UDI JAYE (2)
NA NARE REHAVAYE, NANARE SEHVAYE
NA KOINE KEHVAYE HAI HAI
आदि
आदि
गाने के बोल से , जितनी गुजरती मैं सीख गया हूँ #GuruDrohi के सबटाइटल करके , से पता चलता है की उसके यौवन छलकने की बात हो रही है |
उस दिन तो अपना यौवन भी जोर मार रहा था | जब ५ में से ३ रूममेट BF & GF में लिप्त हों तो उस वातावरण में अपनी कमाई बचाना अलग जोखिम का काम है |
On the commencement of Navratras, Institute Cultural Council invites all of you to the Institute Dandiya Night, a night enthused by Garba and Dandiya. न इस वर्ष न पिछले |
तो सोचा हम भी देखें क्या यौवन है इन में
उस दिन से पहले तक मैंने इसका विडियो तो देखा नहीं था , केवल सुना था |
तो देखने में आता है , एक महिला नाचने का भरसक प्रयास कर रही है , जिसका शरीर सुडौल तो नहीं है कम से कम | बाकि चर्बी की परतें अलग , स्लीव लेस पहन कर अलग अत्याचार कर रही है हम पर . थोड़ी देर में उसका साथी भी आ जाता है & उसकी चुन्नी लेकर आगे के स्टेप्स करता है | ध्यान से निरिक्षण पर पता चलता है कि नाचने वाली महिला ने की ब्लाउज /चोली धागे वाली है |
(स्त्री परिधानों के बारे में मुझे अधिक ज्ञान नहीं है )
तो बात आती है की इन महोदया के नृत्य प्रदर्शन के बाद मेरे पुराने योगवाशिष्ठ महारामायण के संस्कार जग गए , विशेषतः वैराग्य प्रकरण १८ सर्ग जहाँ श्री राम जी मनुष्य शरीर की निंदा करते हैं और सर्ग २१ स्त्री की निंदा वाले प्रसंग याद आ गये |
मूलतः ये वाली पंक्ति
श्रीरामचन्द्रजीं ने कहा : महर्षिजी, गीली आँतों (पेट में स्थित मल, मूत्र आदि को थैलियों) और
नादियों से व्याप्त परिणामशील और मरणधर्म जो शरीर संसार में सबके सामने प्रकाशित हो रहा है,
वह भी केवल दुःख भोग के लिए ही है । अर्थात् मल, मूत्र, शुक्र और शोणित से आद्र नाड़ियों से परिव्याप्त,
विविध प्रकार के विकारों से युक्त और पतनशील यह जीवदेह वेच्वल दु-भीग के लिए प्रकाशित हो
रहीँ है ।। १ ।।
है ? अर्थात कोई नहीं ||१ ||
उत्साही साधक पढ़ सकते हैं , पृष्ठ संख्या ६२-६५ आश्रम द्वारा प्रकाशित श्री योगवाशिष्ठ महारामायण की |
हमारे पास दो उपलब्ध हैं एक लखनऊ प्रेस, दूसरी आश्रम प्रेस |लखनऊ प्रेस कदाचित संक्षिप्त है और उसके श्लोक अदि की संख्या आश्रम से नहीं मिलती .आप दोनों को यहाँ पढ़ सकते हैं | फेसबुक पर पेज है।
मुझे लगता है अधिक साधकों को नहीं पता (कम को ही पता है ) की आश्रम का एक परिप्रश्नेन विभाग है जहाँ साधक अपने अध्यात्मिक प्रश्न पूछ सकते हैं |
काम विकार जब जब आता है तो अच्छे तरीके से गिरा देता है | इससे बचने का उपाय बताये |
जिसके उत्तर में पूज्य श्री कहते हैं -
सर्वांग आसन करो और मूलबंध करो सर्वांग आसन करके ताकि वो जो वीर्य बनता है वो ऊपर आये मस्तक में शरीर में और मजबूती करे |
प्राणायाम कस के करो सवा मिनट अंदर श्वास रोके और चालीस सेकण्ड बाहर श्वास रोके. और आवले के चूर्ण में २० प्रतिशत हल्दी मिलाकर ३-३ ग्राम सेवन करो .युवाधन पुस्तक पढ़ा करो |
शादी नहीं किया है तो पहले ईश्वर प्राप्ति करके फिर संसार में जाओ अथवा तो खाली होकर मरो फिर जन्मों तुम्हारी मर्जी की बात है |
Lord Siva said:
न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मचर्यं तपोत्तमम् |
ऊर्ध्वरेता भवेद्यस्तु स देवो न तु मानुषः ||
“Celibacy alone is the supreme penance. Of course, other penances (such as keeping fast and silence etc …) are good in their place, but they are all inferior to Brahmacharya. That Urdhvareta saint who has done penance over the restraint of the sexual organ is not a human-being but God.”
Brahmacharya is also hailed in Jain scriptures.
तवेसु वा उत्त्मं बंभचेरम् |
“Brahmacharya is the supreme penance.”
Lead a well-regulated, moderate married life. Even as a householder you can be a Brahmachari, by sticking to the principles ofGrihastha Dharma, by moderation and regular worship of God. Marriage should not in any way lead you downwards in your spiritual path. You should keep the spiritual fire ever blazing. You should make your wife also understand the real glory of a spiritual life. If both of you observe Brahmacharya for sometime and then avoid excesses, she will give birth to robust children who will be the pride of the country. Conserved energy can be used for higher spiritual purposes. Prevention of frequent maternity will preserve your wife’s health too.Brahmacharya in Grihasthashrama is absolute moderation in sexual intercourse. Householders are allowed to visit their wives once in a month at the proper time without the idea of sexual enjoyment just to get progeny to keep up the line. This is also Brahmacharya Vrata. They are also Brahmacharins.Householders should ask their wives also to observe fasts and to do Japa, meditation and other practices, which will enable them to keep up this Brahmacharya Vrata. They should train their wives also in the study of the Gita, the Upanishads, the Bhagavata and the Ramayana and in diet regulation.Talk to your wife always on spiritual matters. Narrate to her stories from the Mahabharata, the Bhagavata. Sit with her on holidays and read some religious book. Gradually her mind will be changed. She will take interest and delight in spiritual practices. Put this into practice if you want to get rid of the miseries of Samsara and enjoy the eternal bliss of the Soul.
Young men of the present day imitate Westerners in taking their wives always with them when they go out. This practice creates a strong habit in men for having the company of women at all times. A little separation brings a great deal of pain and suffering. Many get a shock when they lose their wives. Further, it becomes very difficult for them to take a vow of celibacy even for a month. Poor, miserable weaklings! Spiritual bankrupts! Try to be away from your partners in life as much as you can. Talk little with them. Be serious. Do not laugh or joke with them. Go along for an evening walk. What did your wise forefathers do? Assimilate from the West only what is good. Vile imitation in fashion, style, dress and food is dangerous.
ॐ ॐ गुरूजी ॐ
nice presentation ...
ReplyDeleteThis is so rare on INTERNET that i had to carefully read all the lines again and again ! Thank god that such ideologies exist, so rare ! Hopefully we can have more and more people understanding the importance of it !
ReplyDeleteI didn't find the post explicit by any means, there are many things all around us that are way more than explicit than this on the contrary if we have to literally make anyone understand (or understand it by ourselves) we will have to expose things, make them open and then provide facts that can raise some basic questions in our mind about the futile desires and stuff.
ReplyDeleteI Think this is more like- Get Logical about Biological :)
Nice Read !
on the lighter note, i think Bani should get more Safety pins so that her odhni is not flying too much ! :P :D
ReplyDeleteNow that is anubhav sampann :)
Deleteमन्ये मोहपिशाचस्य स्थानं यौवनदुर्वनम् |
ReplyDeleteयत्र कामादयः क्रूरा यातुधानाः सहस्रशः || - सुभाषितरत्नाकर
अर्थ - मेरा यह मानना है कि मोह रूपी पिशाच का स्थान (निवास)
यौवन (जवानी) रूपी दुर्गम वन में होता है जहां काम वासना आदि अन्य
हिंसक और निर्दय दैत्य हजारों की संख्या में रहते हैं |
(इस सुभाषित में यौवनावस्था मे होने वाले मोह को एक पिशाच की उपमा
दे कर तथा जवानी को एक दुर्गंम वन की उपमा दे कर कामुकता, क्रोध
आदि दुर्गुणों को निर्दयी दैत्यों की उपमा दे कर इन से बचने के लिये प्रेरित
किया गया है | )
Manye moha-pishaasy sthaanam yauvana-durvanam.
Yatra kaamaadayah krooraa yaatudhaanaah sahasrashah,
Manye = I think. Moha = infatuation, confusion.
Pishaachasya = of a demon's , an imp's. . Sthaanam = venue,
Yauvan = youth. Durvanam = a dense inaccessible forerst.
Yatra = where. Kaamaadayah = kaam +aadayah . Kaam =
sexual desire. Aadayah = and others. Krooraa = cruel.
Yaatudhaaanaah = demons, evil spirits. Sahasrashah =
by the thousands.
i.e. In my view infatuation and confusion like a demon
resides in the minds of young persons akin to an inaccessible
dense forest, where sexual desire and many other vices like
thousands of cruel demons also reside.
(In rhis Subhashita through the similes of demons and a dense
forest for the impressionable mindset of youth, the author has
warned the youth from indulging in various vices.)