ज्यों वफादारी से सेवा को महत्त्व देता है त्यों त्यों त्यों उन्नति के शिखर पर जाता है |
अपनी योग्यता चाहे अभी कुछ भी न हो लेकिन जो योग्यता है इश्वर की प्रीती केलिए धर्म की सेवा रक्षा केलिए उस योग्यता को ठीक ढंग से उपयोग में लेट हैं तो योग्यता का विकास होता है |
जिसको जो माहौल मिलता है सुविधा मिलती है अधिकार मिलता है उसका सदुपयोग नहीं करता तो वहाँ से गिर जाता है , पतित हो जायेगा |आपको जो पद मिला है जो सेवा मिला ही जो वातावरण मिली है जो माहौल मिला है उसका आप अधिकार का दुरूपयोग न करें |
कौन सा प्रमाण पत्र है अपने जो बच्चे सेवा करते हैं बच्चियाँ सेवा करती हैं , उनके पास कोई डिग्रियाँ हैं इसलिए सेवा में सफल होरहे हैं -- नहीं --तत्परता है तो सेवा में सफल होंगे और तत्परता नहीं है तो पड़े रहेंगे बोझा होकर संस्था पर
जिनका भी साधु स्वाभाव होगा, वह गुरु सेवा में कतराएगा नहीं खोज लेगा।
त्रिपद तजे, चौथा पद दर्शे।
जागृत, स्वपन, सुषुप्ति इसको स्वप्ना मान के, जिससे देखते है उस चौथे पद में टिक जाता है गुरु का सेवक।
तोटकाचार्य टिक गए, शबरी भीलण टिक गयी, हम टिक गए, तुकाराम महाराज टिक गए, रविदास चमार टिक गए , ऐसे कई है।
कोई बड़ा तप नही होता है, ------- गुरु की सेवा बस, गुरु सेवा सब तपो का तप है, सब जपो का जप है, सब ज्ञानो का ज्ञान है, मुझे अनुभव है ना।
एक तरफ सम्राट बनने का आमंत्रण है, दूसरी तरफ ब्रह्मज्ञानी गुरु का सेवा कार्य,
सम्राट पद को ठोकर मारो, क्योंकि वह भोगी बनाकर नारको में भेजेगा और गुरु के द्वार का कोई भी दैवी कार्य लगाओ, योगी बनाकर ब्रह्म बना देगा।
समय बर्बाद करने की जरुरत नहीं है |
गुरु की सेवा ऐसा नही मेरी पैर चम्पी कर रहे हो, सेवा हो गयी, ये नहीं -
मैं चाहे उनको देखूँ ना देखूँ , लेकिन ईमानदारी से जो गुरुसेवा करते है, उनमे गुरुतत्व का बल, बुद्धि, प्रसन्नता आ जाती है।
गुरु की सेवा ऐसा नही मेरी पैर चम्पी कर रहे हो, सेवा हो गयी, ये नहीं -
मैं चाहे उनको देखूँ ना देखूँ , लेकिन ईमानदारी से जो गुरुसेवा करते है, उनमे गुरुतत्व का बल, बुद्धि, प्रसन्नता आ जाती है।
सेवा में सफल होते तो उसकी ख़ुशी, उसका धन्यवाद अन्तरात्मा रूप से गुरूजी देते है।
धन्यवाद न भी मिले, गुरु डांटे तो भी गलती निकालते हैं | गुरुसेवा से दुर्मति दूर होती है।
हम सेवा में सफल कैसे हों ?
सेवा के लिए ही सेवा करें। मन में कुछ ख्वाहिश रखकर बाहर से सेवा का स्वाँग करेंगे तो यह समाज के साथ धोखा है। जो समाज को धोखा देता है वह खुद को भी धोखा देता है। सेवा का लिबास पहनकर, सेवा का बोर्ड लगाकर अपना उल्लू सीधा करना यह काम उल्लू लोग जानते हैं। सच्चा सेवक तो सेवा को इतना महत्त्व देगा कि सेवा के रस से ही वह तृप्त रहेगा।
बोलेः ʹभगवान की कृपा से ही ईमानदारी की सेवा होती है।ʹ नहीं तो सेवा के नाम पर लोग बोलते हैं कि ʹहमारी बस सर्विस पिछले चालीस वर्षों से सतत प्रजा की सेवा में है। हमारी कम्पनी पिछले इतने सालों से सेवा कर रही है।ʹ अब सेवा की है कि सेवा के नाम पर अपने बँगले बनाये हैं, मर्सडीज लाये हैं ! अपने पुत्र-परिवार में ममता बढ़ायी फिर जन कल्याण की संस्था खुलवायी। अपनी वासनापूर्ति का नाम सेवा नहीं है। वासना-निवृत्ति हो जिस कर्म से, उसका नाम है सेवा ! अहंकार पोसने का नाम सेवा नहीं है। मनचाहा काम तो कुत्ता भी कर लेता है। आपने देखा होगा कि जब सड़क पर गाड़ी दौड़ाते हैं तो कई बार कुत्ते आपकी गाड़ी के पीछे भौंकते हुए थोड़ी दूर तक दौड़ लगा लेते हैं। यह मनचाहा काम तो कुत्ते भी खोज लेते हैं। आप मनचाहा करोगे तो आपका मन आप पर हावी हो जायेगा। यदि किसी कार्य में आपकी रूचि नहीं है, कोई कार्य आपको अच्छा नहीं लगता है लेकिन शास्त्र और सदगुरू कहते हैं कि वह करना है तो बस, बात पूरी हो गयी ! वह कार्य कर ही डालना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद मई 2013, पृष्ठ संख्या 25,26, अंक 245
http://www.hariomgroup.info/hariomaudio_satsang/Title/2015/Jun/Sevakon-Ke-Liye/Sevakon-Ke-Liye-1.mp3
http://www.hariomgroup.info/hariomaudio_satsang/Title/2015/Jun/Sevakon-Ke-Liye/Sevakon-Ke-Liye-2.mp3
ॐ ॐ गुरूजी ॐ
हम सेवा में सफल कैसे हों ?
सेवा के लिए ही सेवा करें। मन में कुछ ख्वाहिश रखकर बाहर से सेवा का स्वाँग करेंगे तो यह समाज के साथ धोखा है। जो समाज को धोखा देता है वह खुद को भी धोखा देता है। सेवा का लिबास पहनकर, सेवा का बोर्ड लगाकर अपना उल्लू सीधा करना यह काम उल्लू लोग जानते हैं। सच्चा सेवक तो सेवा को इतना महत्त्व देगा कि सेवा के रस से ही वह तृप्त रहेगा।
बोलेः ʹभगवान की कृपा से ही ईमानदारी की सेवा होती है।ʹ नहीं तो सेवा के नाम पर लोग बोलते हैं कि ʹहमारी बस सर्विस पिछले चालीस वर्षों से सतत प्रजा की सेवा में है। हमारी कम्पनी पिछले इतने सालों से सेवा कर रही है।ʹ अब सेवा की है कि सेवा के नाम पर अपने बँगले बनाये हैं, मर्सडीज लाये हैं ! अपने पुत्र-परिवार में ममता बढ़ायी फिर जन कल्याण की संस्था खुलवायी। अपनी वासनापूर्ति का नाम सेवा नहीं है। वासना-निवृत्ति हो जिस कर्म से, उसका नाम है सेवा ! अहंकार पोसने का नाम सेवा नहीं है। मनचाहा काम तो कुत्ता भी कर लेता है। आपने देखा होगा कि जब सड़क पर गाड़ी दौड़ाते हैं तो कई बार कुत्ते आपकी गाड़ी के पीछे भौंकते हुए थोड़ी दूर तक दौड़ लगा लेते हैं। यह मनचाहा काम तो कुत्ते भी खोज लेते हैं। आप मनचाहा करोगे तो आपका मन आप पर हावी हो जायेगा। यदि किसी कार्य में आपकी रूचि नहीं है, कोई कार्य आपको अच्छा नहीं लगता है लेकिन शास्त्र और सदगुरू कहते हैं कि वह करना है तो बस, बात पूरी हो गयी ! वह कार्य कर ही डालना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद मई 2013, पृष्ठ संख्या 25,26, अंक 245
http://www.hariomgroup.info/hariomaudio_satsang/Title/2015/Jun/Sevakon-Ke-Liye/Sevakon-Ke-Liye-1.mp3
http://www.hariomgroup.info/hariomaudio_satsang/Title/2015/Jun/Sevakon-Ke-Liye/Sevakon-Ke-Liye-2.mp3
ॐ ॐ गुरूजी ॐ
No comments:
Post a Comment