जो चीज़ जितनी फालतू , उतनी मेहनत करवाती है | मिटने वाली चीज़ केलिए इतनी मेहनत मजूरी करो , फिर भी मिले न मिले , और मिल भी गया तो उसके अलग दुःख | जबकि अपना आत्मा तो मिला मिलाया है
जबकि नज़र झुकी मुलाकात कर लीवशिष्ठ जी बोलते हैं - हे रामजी फूल पत्ति टहनियाँ तोड़ने में परिश्रम है , लेकिन अपने आत्मा को जानने में क्या परिश्रम ?
जो मिला मिलाया है , उसको छोड़ के उसको पीठ करके भाग रहे हैं दूसरी चीज़ के लिए |
जो चाहते हैं , वह होता नहीं
जो होता है , वह भाता नहीं
जो भाता है , अभागा टिकता नहीं
मुफ्त का माल मिलता है , तो कद्र तो होती नहीं | जिनको कौड़ियाँ समझ रहे हैं , हैं वे हीरे से भी आगे
जो करना है वह तो करते नहीं। ....
जहाँ पुरुषार्थ करना है वह तो भाग्य पर छोड़ दिया , जो प्रारब्ध वेग से स्वाभाविक मिल रहा है उसके लिए मर रहे हैं चिंता करके
भगवान वशिष्ठ जी रामजी को कहते हैं , "एक तिनका मिटाना हो तभी भी परिश्रम करना पड़ता है ,तो यहाँ तो जन्म जन्म के संस्कार त्रिलोकी का आकर्षण मिटाना है इसलिए दीर्घ काल के संस्कारों को मिटाने केलिए दीर्घअभ्यास की ज़रूरत है "
ॐ ॐ गुरूजी ॐ
This post was written in response of civil services prelim exam , somewhere in sion
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