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तुम्हारे रूपये-पैसे, फूल-फल की मुझे आवश्यकता नहीं, लेकिन तुम्हारा और तुम्हारे द्वारा किसी का कल्याण होता है तो बस, मुझे दक्षिणा मिल जाती है, मेरा स्वागत हो जाता है। मैं रोने वालों का रूदन भक्ति में बदलने के लिए, निराशों के जीवन में आशा के दीप जगाने के लिए, लीलाशाहजी की लीला का प्रसाद बाँटने के लिए आया हूँ और बाँटते-बाँटते कइयों को भगवदरस में छका हुआ देखने को आया हूँ। प्रभुप्रेम के गीत गुँजाकर आप भी तृप्त रहेंगे, औरों को भी तृप्ति के आचमन दिया करेंगे, ऐसा आज से आप व्रत ले लें, यही आशाराम की आशा है। ૐ गुरु.... ૐ गुरु..... ૐ गुरु....ૐ......
--पूज्य बापूजी
सर्वं अधितं तेन। तेन सर्वं अनुष्ठितं।।
सर्वं अधितं तेन। तेन सर्वं अनुष्ठितं।।
येन आशा प्रथक कृत्वा। नैराशा अवलम्बितं ।। [हितोपदेश]
पूज्य श्री की व्याख्या
पूज्य श्री की व्याख्या
मैं (बापूजी) आपको सार-सार बात सुनाकर एकदम आध्यात्मिक उड़ान भराना चाहता हूँ|
सर्वं अधितं तेन (उसने सब अध्ययन कर लिया) । तेन सर्वं अनुष्ठितं (उसने सारे अनुष्ठान कर लिए) ।। येन आशा प्रथक कृत्वा (जिसने आशा-वासना छोड़ दी) । नैराशा अवलम्बितं ।।
उस नारायण में ही आशा रहित होकर, आशाओं का गुलाम नहीं आशाओं का राम होकर विश्रांति पता है उसका सब कुछ हो गया ।पढ़ें सम्पूर्ण खांडागिरी के यायावर
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कुछ सैलानी सैर करने सरोवर गये। शरदपूर्णिमा की रात थी। वे लोग नाव में बैठे। नाव आगे बढ़ी। आपस में बात कर रहे हैं किः "यार ! सुना था किः 'चाँदनी रात में जलविहार करने का बड़ा मज़ा आता है.... पानी चाँदी जैसा दिखता है...' यहाँ चारों और पानी ही पानी है। गगन में पूर्णिमा का चाँद चमक रहा है फिर भी मज़ा नहीं आता है।"
केवट उनकी बात सुन रहा था। वह बोलाः
"बाबू जी ! चाँदनी रात का मजा लेना हो तो यह जो टिमटिमा रहा है न लालटेन, उसको फूँक मारकर बुझा दो। नाव में फानूस रखकर आप चाँदनी रात का मजा लेना चाहते हो? इस फानूस को बुझा दो।"
फानूस को बुझाते ही नावसहित सारा सरोवर चाँदनी में जगमगाने लगा। .....तो क्या फानूस के पहले चाँदनी नहीं थी? आँखों पर फानूस के प्रकाश का प्रभाव था इसलिए चाँदनी के प्रभाव को नहीं देख पा रहे थे।
इसी प्रकार वासना का फानूस जलता है तो ज्ञान की चाँदनी को हम नहीं देख सकते हैं। अतः वासना को पोसो मत। ब्रह्मचारिव्रते स्थितः। जैसे ब्रह्मचारी अकेला रहता है वैसे अपने आप में अकेले.... किसी की आशा मत रखो। आशा रखनी ही है तो राम की आशा रखो। राम की आशा करोगे तो तुम आशाराम बन जाओगे। आशा का दास नहीं.... आशा का राम !
आशा तो एक राम की और आश निराश।
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