फ्लोटिंग आइकॉन

Monday, 30 March 2015

Challenges of Life , ES 200 & Vairagya

HS/ES 200 forms acompulsory course of environmental science to be studied by all final years students as ordered by the supreme court .

But here in IIT Bombay it is different , the ES/HS course is divided in to 2 halfsemester courses further subdivided into 3 modules  6 classes each.

We were being made to watch this video by made by BBC , narrated by David Attenborough . The surround sound of LH 302 was too good , junta mesmerized by the sound effects , not me . I had seen tons of these during class 7 -8 -9 in NatGeo . (janta coming from backward areas probably seeing for the first time)

Now the video starts , all lowly creatures cant think beyond eating mating sleeping & survivng .It struck my mind , I too was them in some point of time .

As if previous births , a film starts playing backward .
No dont want to relive them again .
The same thought crossd my mind when studying the course - 504 Evolution of life through time  y the legendary Prof. GVR Prasad.

Animals like conodonts , hag fish , edicaran fauna - all  neech yonis 




https://www.youtube.com/watch?v=JRlpje1pOzc



Sunday, 29 March 2015

आशाओं के राम



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तुम्हारे रूपये-पैसे, फूल-फल की मुझे आवश्यकता नहीं, लेकिन तुम्हारा और तुम्हारे द्वारा किसी का कल्याण होता है तो बस, मुझे दक्षिणा मिल जाती है, मेरा स्वागत हो जाता है। मैं रोने वालों का रूदन भक्ति में बदलने के लिए, निराशों के जीवन में आशा के दीप जगाने के लिए, लीलाशाहजी की लीला का प्रसाद बाँटने के लिए आया हूँ और बाँटते-बाँटते कइयों को भगवदरस में छका हुआ देखने को आया हूँ। प्रभुप्रेम के गीत गुँजाकर आप भी तृप्त रहेंगे, औरों को भी तृप्ति के आचमन दिया करेंगे, ऐसा आज से आप व्रत ले लें, यही आशाराम की आशा है।  गुरु....  गुरु.....  गुरु..........
--पूज्य बापूजी

 सर्वं अधितं तेन। तेन सर्वं अनुष्ठितं।।
                              येन आशा प्रथक कृत्वा। नैराशा अवलम्बितं ।। [हितोपदेश]
 पूज्य श्री की व्याख्या

मैं (बापूजी) आपको सार-सार बात सुनाकर एकदम आध्यात्मिक उड़ान भराना चाहता हूँ|
सर्वं अधितं तेन (उसने सब अध्ययन कर लिया) । तेन सर्वं अनुष्ठितं (उसने सारे अनुष्ठान कर लिए) ।। येन आशा प्रथक कृत्वा (जिसने आशा-वासना छोड़ दी) । नैराशा अवलम्बितं ।।
उस नारायण में ही आशा रहित होकर, आशाओं का गुलाम नहीं आशाओं का राम  होकर विश्रांति पता है उसका सब कुछ हो गया ।
पढ़ें सम्पूर्ण खांडागिरी के यायावर  
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कुछ सैलानी सैर करने सरोवर गये। शरदपूर्णिमा की रात थी। वे लोग नाव में बैठे। नाव आगे बढ़ी। आपस में बात कर रहे हैं किः "यार ! सुना था किः 'चाँदनी रात में जलविहार करने का बड़ा मज़ा आता है.... पानी चाँदी जैसा दिखता है...' यहाँ चारों और पानी ही पानी है। गगन में पूर्णिमा का चाँद चमक रहा है फिर भी मज़ा नहीं आता है।"
केवट उनकी बात सुन रहा था। वह बोलाः
"बाबू जी ! चाँदनी रात का मजा लेना हो तो यह जो टिमटिमा रहा है न लालटेन, उसको फूँक मारकर बुझा दो। नाव में फानूस रखकर आप चाँदनी रात का मजा लेना चाहते हो? इस फानूस को बुझा दो।"
फानूस को बुझाते ही नावसहित सारा सरोवर चाँदनी में जगमगाने लगा। .....तो क्या फानूस के पहले चाँदनी नहीं थी? आँखों पर फानूस के प्रकाश का प्रभाव था इसलिए चाँदनी के प्रभाव को नहीं देख पा रहे थे।
इसी प्रकार वासना का फानूस जलता है तो ज्ञान की चाँदनी को हम नहीं देख सकते हैं। अतः वासना को पोसो मत। ब्रह्मचारिव्रते स्थितः। जैसे ब्रह्मचारी अकेला रहता है वैसे अपने आप में अकेले.... किसी की आशा मत रखो। आशा रखनी ही है तो राम की आशा रखो। राम की आशा करोगे तो तुम आशाराम बन जाओगे। आशा का दास नहीं.... आशा का राम !

आशा तो एक राम की और आश निराश।

Saturday, 7 March 2015

Weakness in our hearts

Early in the Champaran action, Charles Freer Andrews, the English pacifist who had become a devoted follower of the Mahatma, came to bid Gandhi farewell before going on a tour of duty to the Fiji Islands. Gandhi’s lawyer friends thought it would be a good idea for Andrews to stay in Champaran and help them. Andrews was willing if Gandhi agreed. But Gandhi was vehemently opposed. He said, ‘‘You think that in this unequal fight it would be helpful if we have an Englishman on our side. This shows the weakness of your heart. The cause is just and you must rely upon yourselves to win the battle. You should not seek a prop in Mr. Andrews because he happens to be an Englishman’’.

‘‘He had read our minds correctly,’’ Rajendra Prasad comments, “and we had no reply… Gandhi in this way taught us a lesson in self-reliance’’. Self-reliance, Indian independence and help to sharecroppers were all bound together.



what triggered this post ?

the inherent weakness in the sadhak domain that till a third party no matter who endorses their acts they are not worth it .


latest example was one very popular sewa who unknowlingly promoted idiots who were involved in kuprachar before

 After this I spontaneously remembered the above paragraph   were Gandhi chides the lawyer who thought having a englishman on their side would help their case .


To look at oneself from the perspective of others, not knowing one’s own true nature is the root cause of all sufferings. The desire to project a good image of one’s self is in itself a social vice.

One who seek support from others can not serve the Truth personified God.





When your are disciples of a Self Realized saint   , that is the biggest achievment in itself , ego massage  from a third party wont help much .


ॐ ॐ गुरूजी ॐ